शिव और शक्ति
शिव शब्द का अर्थ है कल्याण और ‘शं का भी अर्थ है कल्याण तथा ‘कर का अर्थ है करने वाला, अर्थात शंकर। शिव, अद्वैत कल्याण, आनंद- ये सारे शब्द एक ही अर्थ के बोधक हैं। शिव ही ब्रह्मा है। ब्रह्मा ही शिव है। वही परब्रह्म अथवा परमतत्व है। इसी तत्व को संक्षेप में दर्शनशास्त्र, के तीन महान आदर्श- सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् के रूप में कहा गया है। ब्रह्मा जगत के जन्मादि का कारण है। श्रुति के अनुसार सृष्टि के पूर्व कुछ भी नहीं था, केवल शिव ही था। शिव की शक्ति भी प्राणियों के कल्याण के लिए तत्पर रहती है।
शिव कूटस्थ तत्व हैं और शक्ति परिणामिनी तत्व है।
जो शिव जीवों के उपकारार्थ तीनों लोकों की स्थिति, संहार और उत्पत्ति का कार्य करते हुए ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र रूपों को रचते हैं तथा जिस शिव की ‘शक्ति’समस्त प्राणियों की वाणी ओर मन से अत्यन्त अगम्य है, वह स्वयं प्रकाश शिव (परमेश्वर) आप लोगों को सर्वदा अक्षय कल्याण(मोक्ष) प्रदान करें। शिव से भिन्न शक्ति नहीं और शक्ति से भिन्न शिव नहीं। शिव में ‘इ’ कार ही शक्ति है। इकार निकल जाने पर ‘शव’ ही रह जाता है। शिव कूटस्थ तत्व हैं और शक्ति परिणामिनी तत्व है। नाना प्रकार की विचित्रताओं से परिपूर्ण संसार के रूप में अभिव्यक्त शक्ति आधार एवं अधिष्ठान शिव ही हैं। शिव ही अदृश्य, अव्यक्त, सर्वगत एवं अचल, निराकार, अजन्मा आत्मा है और शक्ति दृश्य, चल, रूपवान, जन्म लेने वाली अर्थात नाम रूप के द्वारा व्यक्त सत्ता है। विश्व के अनंत शांत एवं गम्भीर वक्ष: स्थल पर अनंत कोटि ब्रह्माण्डों का रूप धारणकर उनके भीतर सर्ग, स्थिति और संहार की विविध लीला करती हुई शक्ति अनवरत नृत्य करती रहती है।
जैसे पुष्प में गन्ध, चन्द्र में चंद्रिका, सूर्य में प्रभा नित्य और स्वभाव सिद्ध है , उसी प्रकार शिव में शक्ति भी स्वभाव-सिद्ध है। शक्ति के उमा, दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती नाम है। शिव पुरूष और उमा स्त्री है। शिव यज्ञ हैं तो उमा वेदी, शिव अग्निी तो उमा स्वाहा। इस प्रकार सर्वत्र शिव के साथ शक्मि विद्यमान है। शास्त्रों का कथन है कि शिव का साक्षात्कार करना अत्यंत कठिन है। सर्वप्रथम शक्ति के आगे आत्मसमर्पण करना पड़ता है। बिना शक्ति की सहायता के शिव का साक्षात्कार नहीं होता है। शक्ति के बिना शिव अर्थात कल्याण की प्राप्ति नहीं ।
शक्ति के आगे आत्मसमर्पण का तात्पर्य यही है कि शक्ति के सहारे मानव देहाभिमान अथवा अहंकार से ऊपर उठ सकता है। जीवन की जितनी भी सूक्ष्म तथा स्थूल क्रियाएं हैं, वे सब शक्ति के ही कार्य है। शक्ति ईश्वरीय तत्व मानी जाती है। शक्ति ही समस्त चर-अचर में व्याप्त है। शिव की आराधना में शक्ति तो समायी हुई है। भारतीय दर्शन में शिव और शक्ति की विषमता एवं विधि का सामंजस्य ही परमात्मतत्व का रहस्य है।