वेदों में शिवतत्व

शिवतत्व तो एक है ही है- ‘एकमेवाद्वितीयं ब्रह्मा’, उस अद्वय-तत्व के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं- ‘एकमेव सत्। नेह नानास्ति किंचन।’ किन्तु उस अद्वय तत्व के नाम अनेक होते हैं- ‘एक’ सद् विप्रा बहुधा वदन्ति।’ अर्थात उस अद्वय-तत्व को अनेक नामों से पुकारते हैं। शिव ही ब्रह्मा हैं-

शवेताश्वतरोपनिशद के प्रारम्भ में ब्रह्मा के सम्बंध में जिज्ञासा उठायी गयी है। पूछा गया है कि जगत का कारण जो ब्रह्मा है, वह कौन है?

‘किं कारणं ब्रह्मा?

श्रुति ने आगे चलकर इस ‘ब्रह्मा’शब्द के स्थान पर ‘रूद्र’और शिव शब्द का प्रयोग किया है-‘एको हि रूद्रः, ‘स-- शिवः किया है-‘एको हि रूद्रः, ‘स-- शिवः

समाधान में बताया गया है कि जगत का कारण स्वभाग आदि न होकर स्वयं भगवान षिव ही इसके अभिन्न निमित्तोपादान कारण हैं-

एको हि रूद्रो न द्वितीयाय तस्थुर्य इमॉंल्लोकानीशत ईशनीभिः।

प्रत्यड्जनांस्तिश्ठति संचुकोचान्तकाले संसृज्य विश्वा भुवनानि गोपाः।।

जो अपनी शासन-शक्तियों के द्वारा लोकों पर शासन करते हैं, वे रूद्र भगवान एक ही हैं। इसलिए विद्वानों ने जगत के कारण के रूप में किसी अन्य का आश्रयण नहीं किया है। वे समस्त जीवों का निर्माणकर पालन करते हैं तथा प्रलय में सबको समेट भी लेते हैं।

इस तरह ‘शिव’ और रूद्र ब्रह्मा के पर्यायवाची शब्द ठहरते हैं। ‘शिव’ को रूद्र इसलिए कहा जाता है कि अपने उपासकों के सामने अपना रूप शीघ्र प्रकट कर देते हैं-

कस्मादुच्यते रूद्रः? यस्मादृषिभिः..... द्रुतमस्य रूपमुपलभ्यते।

भगवान शिव को रूद्र इसलिए भी कहते हैं-ये ‘रूत्’ अर्थात दुख को विनष्ट कर देते हैं- ‘रूत़्-दुखम्, द्रावयति-नाशयतीति रूद्रः।’

तत्व एक है, नाम अनेक-

शिवतत्व तो एक है ही है- ‘एकमेवाद्वितीयं ब्रह्मा’, उस अद्वय-तत्व के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं- ‘एकमेव सत्। नेह नानास्ति किंचन।’ किन्तु उस अद्वय तत्व के नाम अनेक होते हैं- ‘एक’ सद् विप्रा बहुधा वदन्ति।’ अर्थात उस अद्वय-तत्व को अनेक नामों से पुकारते हैं।

रूप भी अनेक-

नाम की तरह उस अद्वय-तत्व के रूप भी अनेक होते हैं। ऋगवेद ने ‘पुरूरूप’। लिखकर इस तथ्य को स्पष्ट कर दिया है। दूसरी श्रुति ने उदाहरण देकर समझाया है कि एक ही भगवान अनेक रूप में कैसे आ जाते हैं-

अग्निर्यथैको भुवनं प्रविष्टो रूपं प्रतिरूपो बभूव।

एकस्थता सर्वभूतान्तरात्मा रूपं रूप  प्रतिरूपो बहिश्च।।

जैसे कण-कण में अनुस्यूत अग्नि एक ही है किन्तु अनेक रूपों में हमारे सामने प्रकट होती है, वैसे ही भगवान शिव एक होते हुए भी अनेक रूपों में प्रकट होते हैं। लोक कल्याण के लिए सद्योजात, वामदेव, तत्पुरूष, अघोर, ईशान आदि अनेक अवतार-रूपों में वे प्रकट हुए हैं।

Comments

No posts found

Write a review

Blog Search

Subscribe

Last articles

शिवतत्व तो एक है ही है- ‘एकमेवाद्वितीयं ब्रह्मा’, उस अद्वय-तत्व के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं- ‘एकमेव सत्। नेह नानास्ति किंचन।’ किन्तु उस अद्वय...
Lord Shiva and Nandi are inseparable. Nandi, also called Nandikeshvara and Nandishvara, is the name of the gate keeper of Kailasa, the abode of...
Shiva was originally known as Rudra, a minor deity addressed only three times in the Rig Veda. He gained importance after absorbing some of the...