श्री हैड़ाखान बाबा
उत्तरी हिमालय में कूर्मांचल क्षेत्र है। इसे कुमायूं भी कहा जाता है। इसकी पर्वतमालायें दूर-दूर तक फैली हैं। इसकी तलहटी में स्थापित है हैड़ाखान सिद्धाश्रम धाम। गॉंव के लोगों ने तथा पास के अन्य क्षेत्रीय निवासियों ने भी बाबा हैड़ाखान के जन्मस्थान्, नाम गॉंव परिवार सभी की खूब छानबीन की किंतु कहीं भी कोई आधारभूत जानकारी नहीं मिली। बाबा जैसे अनामी थे वैसे ही उनके मॉं बाबा, जन्म स्थान, गॉंव का भी पता नहीं था। उस समय भले ही ये सब रहस्य रहा हो परंतु कालांतर में बाबा के सम्पर्क में आने, उनके चमत्कार देखने तथा उनकी अपरिमेय शक्ति का आंकलन करने पर क्षेत्रीय सभी लोगों ने उन्हे अवतारी पुरूष के रूप में सम्मान दिया, उनका यशोगान किया।
धन्यनाम् गिरि कन्दरेषु वसताम् ज्योतिर: परम ध्यायत:
आनंदाश्रुकणान् पिवति शुकना, निश्शंकमकेशया।
अस्माकं तु मनोरथै: परिचित प्रासाद वापीतटे क्रीड़ा कानन
केलि कौतुक जुषाम् आयु: परम क्षीयते।
भतृहरि ने इस श्लोक के माध्यम से कहा है कि वे महापुरूष धन्य हैं, जो जंगलों की कंदराओं-गुफाओं में रहते और उस परम ब्रहम् परमेश्वर का ध्यान करते हैं। उनकी ध्यानावस्था में, वनो के तोते और अन्य पक्षीगण उनकी गोद में बैठकर ऐसे योगियों की सतपुरूषों और महात्माओं की ऑंखों से झरते आनंदाश्रु कणों को पीते नि:शंक हैं और हम हैं कि खेलकूद, मनोरंजन कौतुकों, भवन निर्माण तथा कुंआ, बावड़ी बनाने में अपनी कीमती उम्र बिताते हैं।
ऐसे ही एक महापुरूष या तो कहा जाय कि पुरुष रूप में स्वयं कल्याणकारी शिव, उत्तरी हिमालय के अचल में सन् 1880 में एक आदिवासी ग्राम हेड़ाखान में एक गुफा से प्रकट हुए। उन अनंत श्री प्रात: स्मरणीय योगिराज से जब उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने उल्टे प्रश्नकर्ता से ही उस गॉंव का नाम पूछा। वह गॉंव था हरड़ो, हर्र या हैरड़ों की खदान याने हैड़ाखान। बस उसी के नाम पर उन महापुरुष ने अपना नाम हैड़ाखान बता दिया।
उत्तरी हिमालय में कूर्मांचल क्षेत्र है। इसे कुमायूं भी कहा जाता है। इसकी पर्वतमालायें दूर-दूर तक फैली हैं। इसकी तलहटी में स्थापित है हैड़ाखान सिद्धाश्रम धाम। गॉंव के लोगों ने तथा पास के अन्य क्षेत्रीय निवासियों ने भी बाबा हैड़ाखान के जन्मस्थान्, नाम गॉंव परिवार सभी की खूब छानबीन की किंतु कहीं भी कोई आधारभूत जानकारी नहीं मिली। बाबा जैसे अनामी थे वैसे ही उनके मॉं बाबा, जन्म स्थान, गॉंव का भी पता नहीं था। उस समय भले ही ये सब रहस्य रहा हो परंतु कालांतर में बाबा के सम्पर्क में आने, उनके चमत्कार देखने तथा उनकी अपरिमेय शक्ति का आंकलन करने पर क्षेत्रीय सभी लोगों ने उन्हे अवतारी पुरूष के रूप में सम्मान दिया, उनका यशोगान किया।
संसार का सृजन पालन और संहार तीनों अलग-अलग आदि देवों के कार्य दायित्व हैं। इनमें शिव, महेश, रूद्र अथवा महाकाल के नाम से जाने वाले भगवान शंकर-स्वयं महामृत्युंजय भी कहते हैं। इनमें ही दो विरोधी शकि्त्यों का समन्वय है। अर्थात् जहां एक ओर वे संहारकर्ता हैं वहां महामृत्युंजय भी हैं। कुल मिलाकर वे कल्याणकारी हैं- यथा नामो तथ्ज्ञा गुण वाले, अनंत श्री हैड़ाखान महाराज में उन्हीं का प्रत्यक्ष स्वरूप देखा गया।
वेशभूषा से अत्यधिक सादे थे श्रीमहारा।धोती-कुर्ता और टोपी बस यही थे उनके वस्त्र। गौर वर्ण, उन्नत ललाट, आजान बाहु, न झपकती पलकें, आकर्षक ओजस्वी काया। उनके संपर्क में जो भी आया उसने एक विशिष्ट सुगंधि का अनुभव किया जो उनके शरीर से निकलती थी। उनकी वाणी सामान्य, मधुर, स्पष्ट और सुलझी हुई थी। उनका विशेष आशीर्वाद था ‘बाबा मनसा फलेगी तुम्हारी’ अर्थात इच्छा पूर्ण होगी। साधकों को अक्सर उनसे भावग्राही आदेश मिला करते थे। इस प्रकार आने वाले स्त्री, पुरूष,बच्चे साधक महात्मा तपस्वीगण बिना कोई चमत्कार देखे भी उनसे प्रभावित होते थे। इसमे कोई विवाद नहीं कि बाबा चमत्कारी रहे, जहां कहीं भी गये जिसको भी दर्शन दिये। फिर भी चमत्कार दिखाना न तो उनका ध्येय ही था न रूचि। वे एक योगी, महात्मा, ज्ञानी, साधु तो थे ही किंतु खास विशेषता यह थी कि उनके व्यकित्व में हठ योग, भक्ति योग और ज्ञान, वैराग् का समन्यवय था। वे वर्षों पंच अंगीठी तपते रहे, उसकी भी ऐसी दुष्कर साधना कि प्रत्यक्षदर्शीगण उन्हें अग्निसात् हुआ ही मान बैठते थे। जब कभी भी वे अंगीठी तपते, उन अंगीठियों से 20-25 फुट ऊंची अग्नि शिखाएं उठती और दर्शनार्थी उनके बीच अदृश्य होते बाबा को ऑंखे फाड़कर देखते। किंतु यह एक चमत्कार था कि अग्नि शांत होने पर जब वे बाहर निकलते तो पसीने से भीगे होते और उनके शरीर से निरंतर काफी समय तक स्वेद निस्सरण होता रहता था।
अल्मोड़ा क्षेत्र के कई वयोवृद्ध लोगों ने इस बात की स्पष्ट पुष्टि की है कि बाबा हवन यज्ञ आदि करते तो घी की तरह पानी की आहुतियॉं देते थे। वह भी थोड़ी नही मनों से। वह आहुति जल, घी की तरह ही प्रज्जवलित होती। ऐसे चमत्कारों के आधार पर क्षेत्रीय शिक्षित व अशिक्षित दोनों प्रकार के लोग उन्हें अश्वत्थामा के स्वरूप और अवतार मानते थे। परंतु बाबा इससे भी आगे बहुत कुछ थे। साम्ब सदाशिव स्वरूप विश्वकल्याणकारी शिव के निर्विवाद अवतारी पुरुष। प्रसिद्ध लेखक इंद्राचंद्र जोशी ने उनके बारे में लिखा है कि इनकी छाया नहीं दिखती थी।वे भूख प्यास से परे थे, उनके पैरों के छाप नही पड़ते थे। उनके चरणों में आठों सिद्धियां और नवनिध्यिां लौटा करतीं थीं। उनका शिव अवतार होने की पुष्टि एक और प्रमुख घटना से भी होती है-एक बार वे बदरीनाथ धाम गये वहां मंदिरमें ध्यानास्थ ही बैठ रहे। आरती पूजा हुई तो पुजारी प्रसाद लेकर आया। बाबा को पुकारा पर वे समाधिस्थ थे, न हिले न बोले। पुजारी को लगा कि बाबा ने बदरीनाथ भगवान का प्रसाद ठुकराकर अवज्ञा की है। वह बड़े पुजारी के पास गया, उससे सारा वृतांत कहा। वह भी प्रसाद लकर देने आया पर बाबा ने नहीं लिया, वे तभी उठे और बाहर जाकर एकांत स्थान में एक शिला पर बैठ गये। वह पुजारी भी चला गया। तभी रात को स्वप्न में माता महालक्ष्मीजी ने बड़े पुजारी को सम्बोधित किया ‘वे शिव अवतार हैं, मैं स्वयं प्रसाद खिलाती हूं।’ बड़े पुजारी ने उस दृश्य को देखा भी। बाबा यद्यपि बोलते कम थे। परंतु भक्ति ज्ञान वैराग्य योग पर वेदों, पुराणों, उपनिषदों स्मृतियों पर घंटो बोलते थें। बोधगम्य सरल स्पष्ट भाषा में, अद्वैत वैराग्य और गूढ़ रहस्य समझाते थे।
एक बार एक विद्वान पंडित ने उनसे प्रश्न किया कि वेदों- पुराणों मे भगवान के विराट रूप की बात कही गई है। क्या वह विराट स्वरूप हम नहीं देख सकते? बाबा ने कहा ‘क्यों नहीं एक काम करो। नेत्र मूंदो। भगवान का भजन करो, कुछ देर। फिर आंखे खोलकर देखो बताओ क्या दिखता है।’ पंडित ने वैसा ही किया, परंतु यह क्या पंडितजी को बाबा के असंख्य रूप दिखे, धोती-कुर्ता, टोप पहिने, पास, दूर, ऊपर नीचे, सभी तरफ बाबा ही बाबा। पंडितजी उस साक्षात्कार से बाबा के शरणागत हो गये। एक और घटना है, एक यूरोपीय जोड़े ने बाबा को यूरोपीय वेशभूषा में यूरोप में देखा। रूस में भी उन्हें देखा, पर धोती-कुर्ता जैसी वेशभूषा में।
कूर्मांचल क्षेत्र में ही लोगों के साथ ऐसी अनेक घटनाएं घटी हैं, जिनसे प्रमाणित हो गया कि हैड़ाखान बाबा की अपरिमेय मृत्युंजयी शक्ति, कभी झुठलायी नही जा सकती। शीतलाखेत के पास चम्पा गॉंव के एक ठाकुर की लड़की बीमारी के बाद मृत्यु को प्राप्त हो गई। ठाकुर यद्यपि बाबा का भक्त था, किंतु इसे अपने भाग्य का फल मानकर वह उस मृत देह की अन्तयेष्टि के लिए बाजार में सामान इत्यादि लेने चला गया। जब लौटा तो बाबा दिखे। ठाकुर ने सादे शब्दों से बाबा से कहा-लड़की मरी है उसकी अंतिम क्रिया का सामान लाया हूं, फिर मिलूंगा। बाबा ने कहा ‘जीवित की अंतिम क्रिया नहीं करते बेटे’। इसके बाद ठाकुर ने देखा उसकी लड़की स्वांस लौट चुकी थी।
ऐसी ही घटना रामदत्त नामक एक सज्जन के साथ घटित हुर्ई। उसका भाई मर चुका था, दाह संस्कार से पूर्व राम दत्त तालाब पर नहाने गया। वहां उसे बाबा मिले। बाबा से चर्चा शुरू की तो बाबा रामदत्त के पीछे-पीछे उसके घर आये। एक घास का रस उस मृत भाई के मुंह में निचोड़ा। वह धीरे-धीरे जी उठा। ऐसी अनेकों घटनाएं घटित हुई हैं बाबा के जीवन में जिन्होंने एक स्वर्णिम इतिहास रचा है, उस कूर्मांचल क्षेत्र में।
आज भी अनंत श्री हैड़ाखान महाराज योगीराज बाबा जीवित हैं, वे अजर-अमर हैं, उसी क्षेत्र में मिलते हैं, पर गिने-चुने लोगों को।