कल्याणरूप शिवतत्व

आनंदमय स्वरूपधारी शिव समस्त जग के कल्याणरूप शिवतत्व हैं। परात्पर सच्चिदानन्द परमेश्वर शिव एक हैं, विश्वातीत हैं और विश्वमय भी हैं। वे गुणातीत हैं, गुणमय हैं। वे एक होते हुए भी अनेक-अनेक रूप प्रकट कर कार्य कराते हैं। वे जब अपने विस्ताररहित अद्वितीय मूल स्वरूप में स्थित रहते हैं, तब मानो यह विविध विलासमयी असंख्य रूपों वाली विश्वरूप जादू के खेल की जननी प्रकृतिदेवी उनमें विलीन रहती है। बह्मा, विष्णु और रूद्र सभी परात्पर महाशिव द्वारा प्रकट किये हुए होने के कारण नित्य शुद्ध और दिव्य हैं।

प्रकृति द्वारा रचे जाने वाले विश्व प्रपंच के विनाश होने पर भी इनका विनाश नहीं होता, क्योंकि ये प्रकृति की सत्ता से परे स्वयं प्रभु परमात्मा के ही स्वरूप हैं। जैसे परमात्मा निराकार रूप प्रकृति से परे नित्य निर्विका है। इसी प्रकार उनके ये साकार रूप भी प्रकृति से परे निर्विकार हैं। अन्तर इतना ही है कि निराकार रूप कभी शक्ति को अपने अन्दर इस कदर विलीन किये रहता है कि उसके अस्तित्व का ही पता नहीं लगता और कभी निराकार रहते हुए भी शक्ति को विकासोन्मुखी करके गुण सम्पन्न बन जाता है। परन्तु साकार रूप में शक्ति सदा ही जाग्रत विकसित और सेवा में नियुक्त रहती है। हॉं, कभी-कभी वह भी अन्तःपुर की महारानी के सदृश बाहर सर्वथा अप्रकट सी रहकर प्रभु के साथ क्रीडारत रहती है और कभी बाह्य लीला में प्रकट हो जाती है, यही नित्यलीला और अवतार का तारतम्य है। जहॉं दण्ड और मोह की लीला होती है, वहॉं दण्डित और मोहित होने वाले अवतारों को त्रिदेवां में से तथा दण्डदाता और मोह उत्पन्न करने वाले को परात्पर प्रभु ही समझना चाहिए, जैसे नृसिंहरूप को शरभरूप के द्वारा दण्ड दिया जाना और महेश का मोहिनीरूप द्वारा मोहित होना आदि। बाकी प्रभु की विचित्र लीलाएं प्रभु की कृपा से ही समझी जा सकती हैं।

भारतवर्ष आर्यों का ही मूल निवास है और शिवपूजा अनादिकाल से ही प्रचलित है, क्योंकि सारा विश्व शिव से ही उत्पन्न है, शिव में ही स्थित है और अन्त में शिव में ही विलीन होता है। कुछ लोग भगवान शंकर को तामसी देव मानकर उनकी उपासना में दोष समझते हैं। वास्तव में यह उनका भ्रम है जो बाह्य दृष्टि वाले साम्प्रदायिक आग्रही मनुष्यों का पैदा किया हुआ है। जिन भगवान शिव का गुणगान वेदों, उपनिषदों और वैष्णव कहे जाने वाले पुराणों ने भी किया है, उन्हें तामसी बताना अपने तमोगुणी होने का ही परिचय समान है। 

परात्पर शिव तो सदा ही गुणातीत हैं, वहां तो गुणों की क्रिया ही नहीं है। जिस गुणातीत, नित्य, दिव्य, साकार, चैतन्य रसविग्रह-स्वरूप में क्रिया है, उसमें गुणों का खेल नहीं है। इसमें सन्देह नहीं कि परम उदार आशुतोष भगवान सदाशिव में दया की लीला का विशेष प्रकाश होने के कारण वे भक्तों को मनमानी वस्तु देने को सदैव ही तैयार रहते हैं और मुक्ति की प्राप्ति तो मनुष्य को उनके स्वरूप का ज्ञान हो जाने से ही प्राप्त हो जाती है।

भगवान शिव शुद्ध, सनातन, विज्ञानानन्दन परब्रह्मा हैं, उनकी उपासना परमलाभ के लिए ही या उनका पुनीत प्रेम प्राप्त करने के लिए ही करनी चाहिए। सांसारिक हानि-लाभ तो प्रारब्धवश होते रहते हैं, इनके लिए चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। भक्त को तो सर्वथा जगदम्बा पार्वती की भॉंति अनन्य प्रेमभाव से परमात्मा शिव की उपासना करनी चाहिए। एक बात ध्यान में रखने की है, भगवान शिव के उपासकों में जगत के प्रति वैराग्य अवश्य होना चाहिए। यह निश्चित सिद्धांत है कि विषय भोगों में जिनका चित्त आसक्त है, वे जन परमपद के अधिकारी नहीं हो सकते और उनका पतन ही होता हे। भगवान शिव तो विषय मांगने वालों को विषय और मोक्ष मांगने वालों को मोक्ष दे देते हैं और प्रेम का भिखारी उनके प्रेम को प्राप्त कर धन्य हो जाता है। वे वास्तव में कल्पवृक्ष हैं। मॅुंह मांगा वरदान देने वाले हैं। 

शिव स्वयं कल्याणस्वरूप हैं, यह सदैव स्मरण रहना चाहिए। इससे उनकी उपासना से उपासक का कल्याण बहुत शीघ्र ही हो जाता है। सिर्फ विश्वास करके लग जाने मात्र की देरी है। भगवान के अलावा दूसरे देव बहुत ही छान-बीन के अनन्तर फल देते हैं, परंतु औढरदानी शिव तत्काल ही फल दे देते हैं। बुद्धि या विवके के उद्गम स्थान ही भगवान शिव हैं। उन्हीं से बुद्धि प्राप्त कर समस्त देव, ऋषि, मनुष्य अपने-अपने कार्य में लगे रहते हैं। सभी रूपों में अपनी अलग-अलग विशेषता है। शिव में यही विशेषता है कि ये शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की मनःकामना पूर्ति के समय भोले बन जाते हैं। परंतु जब संहार का समय आता है तो अपने रूद्र रूप द्वारा तत्काल ही संहार कर देते हैं।

भगवान शंकर को भोलेनाथ मानकर जो लोग उन्हें गॅंजेड़ी, भंगेड़ी, औघड़,शमशानवासी, मतवाला एवं अपवित्र वस्तुओं को सेवन करने वाला आदि कहकर हंसी उड़ाते हैं, वे गहरी भूल में हैं। उनकी उन्मत्तता, उनका विषपान, उनका सर्वांगपन आदि बहुत गहरे रहस्य लिये हुए हैं, जिसे शिवकृपा से शिवभक्त समझ सकते हैं। भगवान शिव को परात्पर मानकर उपासना करने वाले के लिए तो वे परब्रह्मा हैं ही। अन्यान्य भगवत्स्वरूपों के उपासकों के लिए,जो शिवस्वरूप को परब्रह्मा नहीं मानते, भगवान शिव उनके लिए मार्गदर्शक परमगुरू अवश्य हैं। भगवान विष्णु के भक्तों के लिए भी सद्गुरू रूप से शिव की उपासना आवश्यक है।

Comments

No posts found

Write a review

Blog Search

Subscribe

Last articles

Essence of spiritual India: photographs of Revered Saints and Siddhas of India. Action into the tapestry that is radiant of spirituality with your curated collection of pictures showcasing the everyday lives and legacies of the many revered saints and Siddhas.
Photo Gallery of Shiva Trust. Explore the images of general activities.
Kanwar Yatra, some sort of pilgrimage steeped with loyalty and even lose, paints some sort of stunning imagine about hope with motions. The faith based process, performed simply by thousands on a yearly basis, facilities close to the act of taking Kanwars – ornately adorned structures utilizing a pair planting containers nicely balanced for a bamboo sheets rod – loaded with Almost holy Ganga normal water, made available being a tribute to be...