लिंगमहापुराण और भगवान शिव
लिंग पुराण में शिव अविनाशी, परब्रह्मा, निर्दोष, सर्वसृष्टि के स्वामी, निर्गुण, अलख, ईश्वरों के भी ईश्वर, सर्वश्रेष्ठ, विश्वम्भर और सृष्टि के स्रष्टा, पालक व संहारकर्ता है। वे परब्रह्मा, परमात्मा आरै परज्योति हैं। विष्णु और ब्रह्मा उनसे पैदा हुए हैं। समस्त सृष्टि के आदि कारण शिव ही हैं। सभी भगवानों की पूजा मूर्ति के रूप में की जाती है, लेकिन भगवान शिव ही है जिनकी पूजा लिंग के रूप में होती है। शिवलिंग की पूजा के महत्व का गुण-गान कई पुराणों और ग्रंथों में पाया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग पूजा की परम्परा कैसे शुरू हुई। सबसे पहले किसने भगवान शिव की लिंग रूप मे पूजा की थी और किस प्रकार शिवलिंग की पूजा की परम्परा शुरू हुई, इससे संबंधित एक कथा लिंगमहापुराण में है।
शिव ही पूर्ण पुरूष हैं:-
एक बार ब्रह्माजी का समाधान करते हुए विष्णु ने कहा- हे ब्रह्मा! आप ऐसा न कहें, शिव ही जगत के हेतु और सब इनके हैं, ये बीजवान हैं। पुराण पुरूष परमेश्वर इन्हीं को कहते हैं। यह जगत इनका खिलौना है। बीजवान ये हैं, आप बीज हैं और हम योनि हैं। विष्णु के उपर्युक्त कथन से यह स्पष्ट होता है कि शिव ही पूर्ण-पुरूष हैं।’
लिंग की उत्पत्ति-
लिंगमहापुराण के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच अपनी-अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। स्वयं को श्रेष्ठ बताने के लिए दोनों देव एक-दूसरे का अपमान करने लगे। जब उनका विवाद बहुत अधिक बढ़ गया, तब एक अग्नि से ज्वालाओं के लिपटा हुआ अति प्रकाशमान ज्योतिर्लिंग भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच आकर स्थापित हो गया।
दोनों देव उस लिंग का रहस्य समझ नहीं पा रहे थे। उस अग्नियुक्त लिंग का मुख्य स्रोत का पता लगाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने उस लिंग के ऊपर और भगवान विष्णु ने लिंग के नीचे की ओर जाना शुरू किया। हजारों सालों तक खोज करने पर भी उन्हें उस लिंग का स्त्रोत नहीं मिला। हार कर वे दोनों देव फिर से वहीं आ गए जहां उन्होंने लिंग को देखा था। वहां आने पर उन्हें ओम का स्वर सुनाई देने लगा। वह सुनकर दोनों देव समझ गए कि यह कोई शक्ति है और उस ओम के स्वर की आराधना करने लगे।
भगवान ब्रहमा और भगवान विष्णु की आराधना से खुश होकर उस लिंग से भगवान शिव प्रकट हुए और दोनों देवों को सद्बुद्धि का वरदान भी दिया। देवों को वरदान देकर भगवान शिव अंतर्धान हो गए और एक शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। लिंगमहापुराण के अनुसार वह भगवान शिव का पहला शिवलिंग माना जाता था।