पार्थिव शिवलिंग पूजन
शिवपूजन में पार्थिव लिंग पूजन का विशेष महत्व है। इसका पूजन करने वाले भक्तों पर सदैव शिव कृपा बनी रहती है। इस लोक में यश वैभव प्राप्त करने के साथ ही मृत्यु उपरांत जीवन मरण के चक्कर से मुक्ति पा जाते हैं। कलयुग में सबसे पहले पार्थिव पूजन कूष्माड ऋषि के पुत्र मंडप ने किया। प्रभु के आदेश पर जगत के कल्याण के लिए उन्होंने पार्थिव लिंग बनाकर शिव अर्चन किया।
पार्थिव पूजा से सभी वस्तुओं को तुरंत प्रदान करती है और तत्क्षण दुखों का नाश करती है। शिव महा पुराण में – “विद्येश्वरसंहिता” -16वां अध्याय के अनुसार
अप मृत्युहरं कालमृत्योश्चापि विनाशनम। सध:कलत्र-पुत्रादि-धन-धान्य प्रदं द्विजा:।।
पार्थिव पूजा से तत्क्षण कलत्र पुत्रादि धन धान्य को प्रदान करती है । और इस लोक में सभी मनोरथ को भी पूर्ण करती है तथा अकाल में होने वाली अपमृत्यु को भी रोक देती है । इस पूजा को स्त्री पुरुष सभी कर सकते है।
मिट्टी और गऊ गोबर से बनाएं पार्थिव लिंग
शिव पूजन करने से पहले पार्थिव लिंग का निर्माण करना चाहिए। इसके लिए मिट्टी, गऊ का गोबर, गुड़, मक्खन और भस्म मिलाकर शिवलिंग बनाए। शिवलिंग के निर्माण में इस बात का ध्यान रखें कि यह 12 अंगुल से ऊंचा नहीं हो। इससे अधिक ऊंचा होने पर पार्थिव लिंग पूजन का पुण्य प्राप्त नहीं होता है। इसे बनाने के बाद ऊँ शिवाय नम: मंत्र से शिवार्चना करनी चाहिए।
मनोकामना पूर्ति को चढ़ाए तीन सेर भोग
भक्तों को मनोकामना पूर्ति के लिए शिवलिंग पर तीन सेर प्रसाद चढ़ाना चाहिए। साथ ही इस बात का ध्यान रहे कि जो प्रसाद शिवलिंग से स्पर्श कर जाए, उसे ग्रहण नहीं करें। इसके लिए शिवलिंग स्पर्श से दूर प्रसाद को ग्रहण करें।
पूजन सामग्री
दूध, दही, बूरा, शहद, घी अभिषेक के लिए। गंगाजल, चंदन, कमल गट्टे, काले तिल, साठी के चावल, धूप, जौ, बेल पत्र, भांग, धतूरा, मदार पुष्प, समी पत्र, अर्पण करें। इसके बाद भोले बाबा की आरती करें। अंत में बर्फी, खीर या बताशों से भोग लगाकर क्षमा याचना करें।